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गुरुवार, 17 अक्तूबर 2019

सुखी जीवन के 2 मंत्र। sukhi jivan ke 2 mantra

सुखी जीवन के 2 मंत्र

जीवन मे प्रसन्न व्यक्ति वह है, जो स्वयं का मुल्यांकन करता है। और दुखी व्यक्ति वह है, जो दूसरों का मूल्यांकन करता है।
यदि सफलता एक सुन्दर पुष्प है। तो विनम्रता उसकी सुगंध ।
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आपसी विश्वास और सहनशीलता। जो व्यक्ति इन दोनों मंत्र को अपने जीवन- व्यवहार और स्वभाव का अंग बना लेता है, उसका जीवन सुखी हो जाता है।

संत कबीर अपनी कुटिया मे बैठे काम कर रहे थे। उनके पास एक व्यक्ति आया। कबीर ने उससे उसके आने का मकसद पुछा। वह बोला , मेरे सामने एक विचित्र प्रश्न है। मै गृहस्थ बनु या सन्यासी ? कबीर मुस्कुराए और बोले, तुम्हारे  मन मे यह प्रश्न उठना कोई नई बात नही है। हर आदमी कुछ बनने से पहले इस तरह के प्रश्न सोचता और उत्तर खोजने की कोशिश करता है। जिसे जैसी सलाह मिल जाती है, वह व्यक्ति वैसा ही बन जाता है। यह निर्णय तो बाद मे होता है कि वह व्यक्ति 'अच्छा' बना या 'बुरा'। दरअसल ,इसमे व्यक्ति का दोष नही होता, क्योंकि वह स्वयं दुविधा मे है।

कबीर ने तब अपनी पत्नी को बुलाया। उस समय दोपहर थी। धुप का प्रकाश खुब फैला हुआ था। पत्नी के आने पर कबीर ने उनसे कहा, यहीं कहीं सुई गिर गई है। रोशनी कम है। दिया जला लाओ ताकि सुई ढुंढ़ सकुं। कबीर की पत्नी अंदर गई और दिया जलाकर ले आई। कबीर ने कहा, देखो, गृहस्थ बनना तो ऐसा बनना। गृहस्थ जीवन की सफलता की कुंजी आपसी विश्वास है।

सुखी जीवन के मंत्र

इसके बाद कबीर उस आदमी को लेकर घर से चले गये। एक उंची टीले पर एक संत का आश्रम था। कबीर उस संत से परिचित थे। कुछ सामान्य बातों के बाद कबीर ने उनसे पुछा, महात्मन' आपकी आयु कितनी है ? संत ने उत्तर दिया, अस्सी वर्ष! देर तक अन्य बातों के बाद कबीर ने कहा, महात्माजी! आपने अपनी आयु नही बताई ? महात्मा ने शांत होकर उत्तर दिया। बेटा बताई तो थी अस्सी वर्ष, शायद तुमने सुना नही। फिर बातचीत चलती रही। कबीर ने फिर पुछा, महात्माजी, आपकी आयु ? संत ने कहा बेटा थोरी देर पहले ही तो बताया था अस्सी साल।
 इसके बाद कबीर वापस चले। टीले से आधी दुर नीचे आये तो कबीर ने चिल्लाकर पुछा, महात्माजी आपकी आयु कितनी है ? संत बोले अस्सी वर्ष, अब कबीर टिले से नीचे उतर आए थे। एक बार फिर कबीर ने जोर से संत की आयु पुछी। संत ने कुटिया से जवाब दिया पर कबीर ने कान पर हाथ रखकर संकेत दिया की सुनाई नही पर रहा। संत टीला उतरकर आए और बोले, तुम शायद भुल गये। मै अस्सी बरस का हुँ। इतना कहकर संत पुन: शांत भाव से टीले पर चले गये। कबीर ने साथ आये व्यक्ति से कहा - संत बनना हो तो ऐसा बनना कि जरा भी क्रोध न आए।
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विश्वास एवं सहनशीलता

वह व्यक्ति अब भी भ्रमित था। कबीर ने कहा - मै गृहस्थ भी हुँ, संत भी हुँ। मेरे जीवन मे 2 मंत्र है, आपसी विशवास और सहनशीलता। जो व्यक्ति इन दोनों मंत्रों को अपने जीवन - व्यवहार और स्वभाव का अंग बना लेता है, उसका जीवन सुखी हो जाता है। और जहाँ पर आपसी विश्वास - सहनशीलता का अभाव होगा, वहां तकरार होगी, टकराव होगा। तब जीवन मे सुख और शांति नही आ सकती।

प्रेम न खेतो उपजे, प्रेम न हाट बिकाय। राजा हो रंक शीश झुका ले जाए।

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