हरि अनंत हरि कथा अनंता
हरि अनंत हरि कथा अनंता। कहहि सुनहि बहु विधि सब संता।
hari anant hari katha ananta |
जाकि रही भावना जैसी, प्रभु मुरत देखी तिन तैसी- मतलब जिस भावना और रास्ते से चलकर प्रभु को हासिल करना चाहते हैं, वैसे ही हमे उसकी अनुभुति होगी। इसिलिए हमेशा ही यह देखना होता है कि हमारे नजरिए मे ही कहीं खोट तो नही है। यदि नजरिए मे खोट है, तो अच्छा से अच्छा रास्ता, अच्छी से अच्छी तपस्या के बावजूद हमे मन मुताबिक सफलता शायद ही मिले।
इसिलिय वेद और शास्त्र हमेशा शुभ संकल्प एवं सच्ची भावना बनाने पर जोर देते हैं । भावना और संकल्प यदि बेतर नही होगा, तो हम जो हासिल करना चाहते है, हमे कभी नही मिल सकता। मकसद कोई भी हो, उसे कई तरह से हासिल किया जा सकता है।
hari anant hari katha ananta |
ईश्वर आदि और अनंत है
गीता मे इसके लिए परमात्मा दर्शन के लिए भक्ति मार्ग और कर्म मार्ग एवं प्रेम मार्ग को बताया गया है। वेद मे अनंत परमात्मा के लिए अनंत रास्तों की बात कही गई है। इसिलिए इस सृष्टि के सृजन के वक्त से साधकजन परमात्मा दर्शन के लिए तरह-तरह के रास्ते , तरह- तरह की विधियाँ अपनाते रहे हैं। पाश्चात्य विचारक प्लीटीनस के मुताबिक, इस दुनिया मे ऐसी तमाम रास्ते है जिनके जरिए वह ज्ञान हासिल किया जा सकता है।हमारी चेतना जितनी फैलती जाती है,हमारे अनुभव और ज्ञान का दायरा भी लगातार बढ़ता जाता है। जे कृष्णमूर्ति हर स्तर पर व्यक्ति को आजाद होने का सवाल खड़ा करते है। हर तरह के बंधन से मुक्त होना इस दुनिया मे कौन नही चाहता। लेकिन बंधनों से छुटकारे का मतलब यह नही है की हमारे जिंदगी का कोई सर्वोच्च लक्ष्य नही है। बगैर मकसद के हम कोई भी कर्म क्यों करेंग और फिर जाएंग कहां? किसके लिए? लेकिन हर व्यक्ति एक काल और योजना मे एक से ज्यादा रास्ता नही पकड़ सकता। यदि चुने गये रास्ते के जरिए से सफलता नही मिलती है, तो यह नही सोचना चाहिए कि रास्ता ही गलत था। मतलब अपने तप, ज्ञान, परिश्रम, समर्पण के तरीके पर भी निष्पक्ष रहना चाहिए।
अच्छे से अच्छा समीक्षक भी किसी दुसरे की पुर्ण निष्पक्ष समीक्षा नही कर सकता। इसलिए सफलता मिलने पर गुरु के पास न जाकर खुद अपनी समीक्षा करनी चाहिए। यही अध्यात्म है और यही दर्शन का सुत्र भी है। इसिलिए हमे हमेशा ही देखना यह होता है कि हमारे नजरिए मे ही तो कोई खोट नही है। यदि नजरिए मे खोट है तो, अच्छे से अच्छा रास्ता, अच्छी से अच्छी तपस्या के बावजूद हमारे मन मुताबिक सफलता शायद ही मिले।
ऐसे मामले मे ज्यादातर होता यह है कि जब एक ही रस्ते मे कई साधक (योग साधक) और विज्ञानी एक ही मंजिल के लिए बढ़ते है, लेकिन उनमे से कई असफल हो जाते है, तो ज्यादातर असफल साधक दुसरों को और मार्ग या तरीके को दोषी ठहराने लगते है। इसिलिए मंजिल पाना तो दुर अपने आपको भी नही समझ पाते । वेद कहते हैं- आपका विकास आपके संकल्प के स्तर पर होगा। इसिलिए वेद मंत्रों मे ' तन्मे मन: शिव संकल्पमस्तु' की प्रेरणा दी गई है। शिव संकल्प वाला व्यक्ति हमेशा ऐसा रास्ता अपनाता है, जिससे परमानंद की प्राप्ति हो सके और सफलता पा सके|
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Bahut hi sunder
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