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शनिवार, 19 अक्टूबर 2019

चिंता न करें, खुश रहें। chinta na kare khush rahe

चिंता न करें, खुश रहें।

  • चिंता ऐसी डाकिनी काटि कलेजा खाय। वैध बेचारा क्या करे कहां तक दबा पिलाय।
  • चिंता से चतुराई घटे, दुख से घटे शरीर ।और पाप से लक्ष्मी घटे, कह गये दास कबीर।
  • जो बीत गई सो बीत गई तकदीर का सीकबा कौन करे।जो तीर कमान से निकल गई उस तीर का पिछा कौन करे।
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chinta na kare kush rahe

  • चिंता न करें खुश रहें। खुश रहने का विकल्प चुने, क्योंकि अंतत: चुनाव आपको ही करना है। आप भविष्य मे होने वाली घटनाओं के बारे मे या तो चिंता करने का विकल्प चुन सकते है, या खुश रहने का, यह एक चुनाव है। आप जो चुनेगें, आप वैसा ही महसूस करेंग। चिंता (worry) शब्द की उत्पत्ति, दम घुटने से हुई है, और यह डर का ही एक रुप है। डर व्यक्ति को अपाहिज बना देता है। यह उन लोगो के हाथ- पैर बाँध देता है, जो महान काम कर सकते थे। डर उन्हें उन कामों को करने की कोशिश ही नही करने देता, जो वह शायद कर सकते थे।

  • डर सपनो और रचनात्मकता का गला घोंट देता है, और उनकी हत्या कर देता है। डर के बारे मे सबसे रोचक बात यह है कि यह सिखा गया व्यवहार है। मनोवैज्ञानिक कहते हैं हम दो डरों के साथ पैदा होते हैं, गिरने का डर और तेज आवाजों का डर। बाकी सभी डर हम सिखते है। ये डर आमतौर पर कल्पना के दुरुपयोग कि वजह से पैदा होते है‌। कल्पना की वजह से ही हम संभावना को देखते है।
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chinta nahi chintan kare 

चिंता नही चिंतन करें


  • जीवन मे कई बार हम हर संभावित समस्या के बारे मे सोचने मे अपने मष्तिष्क का प्रयोग करते है। दरअसल हमारा मष्तिष्क समस्याओं के बारे मे सोचने के लिए नही बने है। उन्हे  तो सामाधान सोचने के लिए बनाया गया है। समाधान के बारे मे सोचने के बाद हमारे मष्तिष्क का प्रयोग यह सोचने मे होना चाहिए किस तरह इन सपनो को साकार किया जाय। डर को अपना गला न दबाने दें। अपने डर को बाहर निकालें, इसे नष्ट करें, इसे तोड़ें, अपने से दुर करें, छोड़ें और इसे जाने दें। डर की आँखों मे आँखे डालकर देंखे। इसे चुनौती दें, और यह दुर चला जाएगा। डर और चिंता का इलाज़ कर्म है।

  • डर कर्म को सहन नही कर सकता। अपने सपनों का पिछा करें। चिंता न करें। खुश रहें।डर बाधाएं देखता है, आस्था अवसर देखती है।डर समस्या देखता है, आस्था संभावनाएँ देखती है।डर रुकावटे का पत्थर देखता है, आस्था सीढ़ी देखती है।अगर आप खुद को कमजोर मानते है, तो आप खुद का नही भगवान का अपमान करते है।
Nature वही देता है जो आप मांगते है।
Nature is Natural
https://www.jivankisachai.com/









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