गीता का ज्ञान।
ॐ नमः भगवते वासुदेवाय।
भगवान श्रीकृष्ण की अमृतवाणी
मोह ममता और भय का नाश करने वाले यह गीता का ज्ञान केवल अर्जुन को ही नहीं समस्त मानव के लिए उपयोगी है।
जन्म-मृत्यु मान-अपमान यश-अपयश लाभ-हानि जय-पराजय ये सब विधाता के हाथ में होता है अर्थात भगवान के हाथ में है। मनुष्य केबल कर्ता मात्र है केबल कर्म ही मनुष्य के हाथ में है फल तो भगवान के हाथ में है। निष्काम भाव से धर्म अनुकूल कार्य करना ही मानव का धर्म है। बांकी तो भगवान के हाथ में है।
आत्मा अमर है देह नश्वर है आत्मा कभी मरता नहीं वह तो परमात्मा का ही अंश है अजर अमर है। इस संसार में जो कुछ भी घटित होता है वह मेरे द्वारा ही होता है। ये बाते जो मनुष्य समझ ले वह अपने जीवन को आनंद पूर्वक जी सकता है।
जो मनुष्य इस बात को समझ गया वह न ही बीते हुए कल पर रोता है न ही आनेवाले कल का चिंता करता है। जो होना है वह होकर रहेगा और जो नहीं होना है वह कभी नहीं होगा। जो मनुष्य इस बात को समझ जाय वह कभी चिंतित और भय में नहीं रहता है। यही है गीता का ज्ञान।
जन्म और मृत्यु यह जीवन का सतत प्रवाह है जो जन्म लेगा वह मरेगा भी यह सत्य है जो मनुष्य इसे जितना जल्दी समझ ले उतना अच्छा होगा, भगवान श्रीकृष्ण कहते है जन्म देने वाला भी में ही हु और मारने वाला भी में ही हूं। जो भी घटना घटित होता है उसमें मेरा ही नियति समझो। तभी मोह-माया और भय से मुक्त हो सकते हो यही जीवन का सार है।
जो मनुष्य धर्म के राह पर चलता है भगवान उसका साथ अवश्य देते है। आपको जो चाहिए वह महत्वपूर्ण नहीं आपके लिए जो अच्छा होगा वह भगवान जानते है और वही आपको मिलेगा यही सत्य है।
मोह ममता भय आसक्ति के जाल में जो मनुष्य फंस जाता है वह अपना मूल स्वरूप भूल जाता है। धर्म क्या है और अधर्म क्या है इसे जानना और समझना जरूरी है, तभी तो हम अपने जीवन को सही दिशा दे सकते है अन्यथा मझधार में फंस कर जीवन व्यर्थ ही चला जाएगा। मनुष्य जीवन अनमोल है इसे तो जानना जरूरी है।
जो मनुष्य इच्छा और प्रबल कामनाओं के बस में हो जाता है और जब कामनाएं पूरा नहीं होता तो क्रोध उत्पन होता है और क्रोध विवेक को जला देता तब मनुष्य अधर्म के राह पर चल पड़ता है और अपना जीवन नर्क बना लेता है। ऐसे में सुख और शांति से दूर हो जाता है। और अपना जीवन व्यर्थ ही गंवा देता है।
आत्मा शुद्ध शाश्वत और अमर है वह भगवान का अंश है फिर हमे किस बात की चिंता।
मनुष्य को भगवान के प्रति समर्पण भाव रखना चाहिए तभी मनुष्य सच्चा सुख का अनुभव कर पाएगा।
जय श्री कृष्णा
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