श्रीमद भगवद्गीता अध्याय-१
मनुष्य ही सृष्टि में एक ऐसा प्राणी है जो परमात्मा तक की दुरी तय कर सकता है। ये शास्त्रों का कथन है। एक मात्र शास्त्र जो भगवान के मुख से प्रकट हुआ है वह है श्रीमद भगवद्गीता।
जब व्यक्ति अपने कर्तव्यों से विमुख हो जाए तभी भगवद्गीता के उपदेश की आवयश्कता होती है।
जब भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को उपदेश दिया उस समय अर्जुन अपने कर्तव्यों से विमुख हो रहा था। अपने कर्तव्यों का पालन करना बहुत जरूरी है। आत्मा को जागृत करना ही भगवद्गीता का उपदेश है। किसी भी परिस्थिति में अपने कर्तव्यों से भागना नहीं चाहिए। दुर्गुण और सद्गुण को पहचानना ही भगवद्गीता का ज्ञान है। धर्म के अनुसार कर्म ही गीता का उपदेश है। धर्म और अधर्म का ज्ञान ही गीता का उपदेश है।
ज्ञान और अज्ञान का भेद ही समझना गीता का उपदेश है। जब तक मनुष्य भगवान के प्रति शरणागत भाव नहीं रखेगा तब तक गीता का ज्ञान उसे समझ नहीं आएगा। अर्जुन पहले शरणागत भाव में आए। तब भगवान श्रीकृष्ण ने गीता का उपदेश दिए। शरणागत भाव होने बाद ही भगवान का उपदेश समझ में आता है। जहां भगवान है वहीं धर्म है वहीं ज्ञान है वहीं सच्चा सुख है। अन्यथा कुछ भी नहीं, इसीलिए गीता का ज्ञान साक्षात् भगवान के वचन है जो सदेव मंगलकारी है। युगों युगों तक गीता का ज्ञान मानव को मार्गदर्शन देता रहेगा। मोह और माया के जंजाल को काटने वाला है गीता का ज्ञान।
मोहि छल कपट छिद्र नहीं भावा। निर्मल मन जन सो मोहि पावा।
भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को भगवद्गीता का उपदेश दिए यह संपूर्ण मानव के लिए था। क्योंकि जो स्थिति अर्जुन का था वही संपूर्ण मानव का भी है। मानव के सभी समस्याओं का हल भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को निमित्त बनाकर दिया है।
नर नहीं वह जंतु है जिस नर को धर्म का भान नहीं। व्यर्थ है जीवन उसका जिसे आत्मतत्व का ज्ञान नहीं।
जय श्रीकृष्ण।
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