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शुक्रवार, 24 मई 2024

नाम स्मरण से प्रभु-कृपा

नाम स्मरण से प्रभु कृपा
प्रभु का आशीर्वाद करना उतना ही सरल है जितना मक्खन को द्रवित करना। प्रभु का ह्रदय मक्खन के समान बताया गया है। थोरा सा ही ताप उसे द्रवित करने के लिए प्रयाप्त है। जैसे एक दुखी साथी को थोड़े से प्रेमयुक्कत व्यवहार से अपना ब‌नाया जा सकता है। वैसे ही ह्रदय द्वारा थोड़े नाम स्मरण से प्रभु को अपना बनाया जा सकता है। यह एक ऐसा स्रोत है जिससे नाम स्मरण के द्वारा मनुष्य को चैतन्यता प्राप्त होती है। यह जीवनदाता अमृत है। यही पुरातन और प्रथम शक्ति का जनक है।
नाम का स्मरण करो तो यह नामधारी तुम्हारे सामने प्रगट हो जाएगा। नाम को रुप दो, तुम्हारे होंठों पर नाम स्वमेव आ जाएगा। नाम और रुप एक ही मुद्रा (सिक्के) के दोनो ओर के स्वरूप है। कुछ तो रामायण या किसी और नाम को लाखों बार लिखने का वचन लेते हैं। उपक्रम करते है, किन्तु अधिकतर लोगों के लिए यह कार्य केवल कलम और उंगलियों तक सीमित रहता है।
प्रभु का कृपा पात्र बनने के लिए जरुरी है उसकी आज्ञा का निसंकोच पालन करो। प्रभु का आशीर्वाद उन लोगों को प्राप्त होता है जो उसकी आज्ञा मानते हैं और उसके बताए मार्ग पर चलते हैं, किन्तु ऐसे लोगों की संख्या बहुत कम है। यद्यपि यह कार्य कठिन नही बल्कि सहज और सुगम है।
रामायण के द्वारा अपने ह्रदय को अयोध्या बनाइए। अयोध्या का अर्थ है एक ऐसा नगर जिसे शक्ति द्वारा नही जीता जा सकता। अपने ह्रदय मे राम को बसाइए। फिर कोई बाहरी शक्ति तुम्हारा अहित नही कर सकता। सुख और दुख को समुद्र की लहरों के समान समझिए, उत्थान- पतन एसे ही है जैसे श्वास का आना और जाना। यदि आप शान्ति प्राप्त कर लो, तो जिस स्थान पर तुम खड़े हो वही काशी है और तुम्हारे द्वारा किया गया प्रत्येक कार्य महान है। अतः अपने मन की गहराइयों मे उतर जाइए और इश्वर की दिशाओं और रहस्यों को परखिए। 
रामहि केवल प्राण प्यारा। जान ले सो जाननहारा ।।
कलयुग केबल नाम आधारा। सुमरि- सुमरि नर उतरहिं पारा।।
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