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शनिवार, 25 मई 2024

अंत: परिवर्तन भी जरुरी है

अंत: परिवर्तन भी जरुरी है।
बातें करने, तर्क करने और व्याख्या करने का कोई छोर नही होता। वास्तविकता तो यह है कि व्याख्याएं, तर्क और बातें सीधी करवाई की ओर नही जाती, क्योंकि उसके लिए हमे ही  मुलभुत रुप से बदलना होता है। उसके लिए किसी तर्क की आवश्यकता नही होती है। कोई विश्वास दिलाने से, किसी सुत्र- सिद्धांत से, किसी दुसरे के द्वारा डाले जाने वाले किसी प्रभाव से हमसे वास्तविक अर्थ मे आधारभूत परिवर्तन नही आ सकता।
हममे परिवर्तन की आशा तो है, परंतु वह किसी अन्य के विशेष विचार सुत्र या धारणा के अनुसार नही होना चाहिए, क्योंकि कुछ करते समय जब हममे दुसरे के विचार विधमान रहते है, तब वह करना हमारा करना नही रह जाता। इस करने और इस विचार के बीच समय का अंतराल रहता है और इस समय अंतराल मे उस विचार के प्रति, उस सुत्र के प्रति या तो प्रतिरोध होता है या अनुसरण या फिर अनुकरण, और होता है इसे कार्यरूप मे ले जाने जा प्रयास। 
हम जानते है कि हमे बदलना है, न केवल बहरी तौर पर बल्कि गहरे तक मनोवैज्ञानिक रुप से। बाह्य परिवर्तन तो बहुत से है। वे हमे किसी कार्यप्रणाली के किसी तौर तरीके का अनुसरण करने के लिए बाध्य करते है, परंतु जीवन की चुनौतियों का सामना करने के लिए गहन क्रांति की आवश्यकता होती है।
हममे से अधिकांश लोगों के पास कोई न कोई पूर्व निर्धारित विचार या धारणा होती है कि हमे क्या करना चाहिए, परंतु हम कभी बुनियादी तौर से नही बदल पाते। हमे क्या होना चाहिए, तत्संबंधी विचार और मनोभाव हममे कोई परिवर्तन नही ला पाते। हम तभी बदलते है जब यह नितांत आवश्यक हो जाता है। हम परिवर्तन की आवश्यकता को कभी प्रत्यक्षत: नही देख पाते। हम कभी बदलना भी चाहते है, तो हममे भारी द्वंद्व और प्रतिरोध खड़ा हो जाता है और हम प्रतिरोध करने मे, अवरोध खड़े करने मे भी अपनी विपुल उर्जा व्यर्थ कर देते है।
परिवर्तन प्रकृति का नियम है
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