इन्सान इश्वर की एसी रचना है
इन्सान इश्वर की एसी रचना है जो सिर्फ अपना ही नही कई पीढ़ियों का उद्धार करती है।
जो भविष्य का निर्माण करके जाता है वही इन्सान कहलाता है।
बेरुह होकर जीने का तरीका मे जानता नही।
कुछ मुझे मालुम नही और कुछ मैं मानता नही।
जी रहे है कि बस जीना है ये तो कोई तरीका न हुआ।
बिना जिंदादिलि के जिये ये तो कोई सलिका न हुआ।
समर मे घाव खाता है वही सम्मान पाता है।
छिपा उस वेदना मे अमर वरदान होता है।
सृजन मे चोट खाता है हथौरी और छेनी का।
वही पाषाण मंदिर मे कहीं भगवान होता है।
जो भविष्य का निर्माण करके जाता है वही इन्सान कहलाता है।
बेरुह होकर जीने का तरीका मे जानता नही।
कुछ मुझे मालुम नही और कुछ मैं मानता नही।
जी रहे है कि बस जीना है ये तो कोई तरीका न हुआ।
बिना जिंदादिलि के जिये ये तो कोई सलिका न हुआ।
समर मे घाव खाता है वही सम्मान पाता है।
छिपा उस वेदना मे अमर वरदान होता है।
सृजन मे चोट खाता है हथौरी और छेनी का।
वही पाषाण मंदिर मे कहीं भगवान होता है।
इन्सान इश्वर की एसी रचना है
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